Tuesday, October 22, 2019

कम्बल के रूप में भालू (Kambal ke roop me bhaalu)

लॆखक : बि.  जि.  अनन्त 
हिन्दि अनुवाद : अर्चना वागीश

यह संसार असंख्य वस्तुओं और अगणनीय  चीज़ों से भरे हुए हैं | इन सब के बीच में  हमें जीना हैं | ऐसी स्थिति में हमें जिन चीज़ों की आवश्यक्ता हो सिर्फ उन्हें पाने की प्रयत्न करने में ही समझदारी हैं | इसके बजाय अगर हम उन सभी चीज़ों के पीछे जाएँ, जिस पर हमारी नज़र चले, तो हम उन चीज़ों के अधीन होकर , क्लेश मह्सूस करसकते हैं |  ‘मैंने इसे जो  समझकर स्वीकार किया, यह वह नहीं हैं, बल्कि कुछ और ही है’- ऐसी उलझन में पड़ सकते हैं | इस विषय में श्रीरंगमहागुरु  एक दिलचस्प कथा सुनाते थे 
एक बार एक नदी के किनारे दो दोस्त खड़े थे |  नदी प्रवाह का सौन्दर्य देखते आनंद में डूबे थे |  इस दौरान नदी के बीच में एक काली वस्तु तैरते हुए दिखाई दिया | उन दोनों के बीच जिसे तैरना आता था उसने –‘ देखो एक अच्छासा काला कम्बल तैरकर आ रहा है | कभी तो हमें इसकी आवश्यकता होगी | अभी लेकर आता हूँ’ यह कहकर नदी में कूदा और तैरने लगा और बहुत प्रयास के साथ तैरते हुए उस काला चीज़ को पकड़कर रखा | लेकिन उसके बाद तुरंत उसने आवाज़ लगाया- ‘यह कंबल नहीं बल्कि भालू है’ | उसके पश्चात नदी किनारे पर खड़ा हुआ साथी पुकारा- ‘तो फिर क्यों उसे पकड़े हुए हो, उसे छोड़ कर आ जाओ’ | ‘हाय! उसे छोड़ने के बावजूद भी वह मुझे नहीं छोड़ रहा हैं’ ऐसा उत्तर मिला |  इसका मतलब  हुआ  की वह आदमी भालू को छोड़ देने के पश्चात भी भालू उसे नहीं छोड़ रहा था |
यह तो हमारी ही कहानी हैं | हमें आवश्यक हैं ऐसा सोच कर हम अनेक चीज़ों पर इच्छा रखते हैं | उन्हें पाने के लिए हम बहुत परिश्रम करते हैं | इस के कारण हमारे मेहनत की कमाई और अमूल्य समय  खर्च करदेते हैं | इन सब के बाद  हुम्हे यह एहसास होने लगता है की हम्हे यह सब नहीं चाहिए था | जो हमने सोचा था यह उससे अलग हैं | ऐसा  कई  बार  हमारे  साथ  होता है | परन्तु क्या करें? हमने स्वयं इस वस्तु से लगाव रखे हुए हैं | अब यह हमारे साथ जुड़ गया है | इसीलिए किसी वस्तु के साथ लगाव रखने से पहले बहुत अच्छी तरह से सोच लेना चाहिए | श्रीरंगमहागुरु इस विषय के बारे में कहते थे-‘ विश्वास करने पर निश्वास छोड़ देने  की अवस्था (मानसिक थकान के कारण) नहीं आना चाहिए | इस विषय में सावधानी ज़रूरी है’ | कुछ समय के लिए अगर हम बिल्ली कुत्तों का पालनकरके  बादमे  उन्हे छोड़ देना चाहे तो वे हमें नहीं छोड़ते | अगर हम उन्हें धक्का देकर निकाल दे तो भी हमारे घर छोड़कर नहीं जाते | कुछ विषय इस प्रकार ही होते हैं | अगर हम दिमाग में विषयों को ज़रा सा भी जगह दे दें तो (हमसे) मजबूती से जुड़ जाते हैं | इसीलिए अनावश्यक विषयों और जानकारियों को हमारे दिमाग भरने से रोकें |
Note: The Kannada version of this article can be viewed at AYVM blogs